यह सुनकर आश्चर्य होगा कि सहारनपुर में हुई हिंसा पूर्व नियोजित था। कांग्रेसी नेता पप्पू ने यह बात कबूल की है। उसने तो यह भी बताया कि किस तरह लोगों को भ्रमित किया गया है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है कि नेता लोग लोगों को भ्रमित करके दंगा कराते है चाहे वह 1984 का दंगा हो या मूजफ्परनगर का या फिर हो सहारनपुर का सभी जगह नेताओं ने ही लोगों को ज्यादा भड़काया। यह जानकर और बुरा लगता है कि हर बार अनपढ़ लोग मारे जाते हैं चाहे वे हिंदू हो या मुसलमान. उनको इतना बस बताया जाता है कि उनके धर्म को इस तरह से हानि पहुंचाई जा रही है बस वे अपने मन से इसी को सही मान भी लेते हैं क्योंकि उनके समझदार धर्म गुरु के द्वारा कही गई बात होती है। सहारनपुर घटना का मास्टर मोहर्रम अली उर्फ पप्पू ने पुलिस पूछताछ में बताया कि विवादित जमीन के लिए वह ब्लैकमेलिंग भी कर रहा था। मांग पूरी नहीं हुई तो उसने सोची-समझी साजिश के तहत मस्जिद के शहीद होने की बात लोगों तक पहुंचा कर लोगों को जमा किया फिर शुरु हुआ दुकानों को जलाने और लोगों को मारने का खेल। इस घटना के बाद यह कांग्रेसी नेता एवं पूर्व सभासद पश्चिम उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा दंगाई है। इसके खिलाफ दंगे के 87 मामले दर्ज है। इन तमाम बातों से पता चलता है कि यह दंगाई कितने दिनों से लोगों के लिए खतरा बना हुआ है। यह जानकर और दुःख होता है कि ऐसे लोगों को पुलिस आजाद रखती जबकि ऐसे लोगों का जगह कहीं और होना चाहिए। हाल में देशभर में नया तनाव का माहौल बना हुआ है। कुछ शरारती तत्व हिंदू देवताओं के चित्रों पर जूता-चप्पल डालकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जिसके बाद कई जगहों पर विवाद और हिंसा फैल गई है।
गुलामी के वक्त भले ही कलम से आजादी की लड़ाई लड़ी गई हो, लेकिन अब वह खुद गुलाम हो चुकी है। कार्पोरेट कंपनियां कलम के मालिक बन बैठे हैं। वहीं कुछ को सत्ता ने तो कुछ को विपक्ष ने खरीद लिया है। यह यूं नहीं हुआ, वक्त के साथ जब कलम कमजोर पड़ी तब ही Keyboard शक्तिशाली हुआ। फिर वह समय आ गया जब कलम दुकानों में बिकने लगी और उसी दुकान की शोभा बन बैठे Keyboard। साथ ही कलम की आजादी गुलामी में बदल गई। कलम के आजादी की लड़ाई आसान नहीं है, यह लड़ाई अब Keyboard से लड़नी होगी। पत्रकार
शुक्रवार, 1 अगस्त 2014
सहारनपुर की घटना पू्र्व नियोजित था
सदस्यता लें
संदेश (Atom)