रविवार, 12 अक्तूबर 2014

हुदहुद चक्रवात और उससे नुकसान

देश में आया 'हुदहुद' चक्रवात उसके कारण और नुकसान
देश के समुद्री क्षेत्रों में चक्रवात हुदहुद को लेकर एलर्ट है। इसी चक्रवात पर हम बात कर रहे हैं। इसका नाम हुदहुद कैसे पड़ा यह कहां-कहां कितना असर डाला और डाल रहा है। यह चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उत्तरी अंडमान के पास उठा है और अब यह आंध्रप्रदेश और ओडिशा तेज़ी से बढ़ रहा है। यह चक्रवात हलांकि भारत पर ज्यादा असर डाला है पर इसका नामकरण “हुदहुद” ओमान ने किया है। खबरों के अनुसार हुदहुद अरबी भाषा में हूपु नाम की चिड़िया को कहा जाता है जिसपर इसका नाम रखा गया है। चक्रवातों के नाम रखने के पीछे की कहानी यहां हम आपको बताएंगे। फिलहाल जानते हैं कि क्या है चक्रवात और इनका नाम कैसे रखा जाता है। यह कहानी 1953 से शुरु होती है जब मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) ने तूफ़ानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता शुरु किया था। आपको बताते चलें कि डब्लूएमओ जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी है फिर भी उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा क्योंकि ऐसा करना काफ़ी विवादास्पद काम था। भारत के चक्रवात चेतावनी केंद्र के प्रमुख डॉक्टर एम माहापात्रा के मुताबिक़ इसके पीछे कारण यह था कि जातीय विविधता वाले इस क्षेत्र में हमें काफ़ी सावधान और निष्पक्ष रहने की ज़रूरत थी ताकि यह लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए। डब्ल्यूएमओ के लिए 2004 में तब स्थिति बदली, जब डब्लूएमओ की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय पैनल भंग कर दी गई और अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले चक्रवात का नाम ख़ुद रखने को कहा गया। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड को मिलाकर कुल आठ देशों ने हिस्सा लिया। इन देशों ने 64 नामों की एक सूची सौंपी। हर देश ने आने वाले चक्रवात के लिए आठ नाम सुझाए यह सूची हर देश के वर्ण क्रम के अनुसार है। इस क्षेत्र में आने वाला आख़िरी चक्रवात जून में आने वाला ‘नानुक’ था, जिसका नाम म्यांमार ने रखा था। सदस्य देशों के लोग भी नाम सुझा सकते हैं। मसलन भारत सरकार इस शर्त पर लोगों की सलाह मांगती है कि नाम छोटे, समझ आने लायक, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों। वर्ण क्रम के अनुसार इस बार ओमान की बारी थी, और उसने हुदहुद नाम रखा। पिछले साल भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर आए पायलिन चक्रवात का नाम थाईलैंड ने रखा था। इस सूची में शामिल भारतीय नाम काफ़ी आम नाम हैं, जैसे मेघ, सागर, और वायु। अगली बार इस इलाको में चक्रवात के नामकरण की बारी पाकिस्तान की होगी। इसे नीलोफ़र कहा जाएगा। पिछली बार पाकिस्तान ने नवंबर 2012 में जिस चक्रवात का नाम रखा था उसे 'निलम' कहते हैं। डॉक्टर महापात्रा के अनुसार हुदहुद संभवतः इस सूची का 34वां नाम है। इसका मतलब है कि अभी इस सूची में 30 नाम और हैं। चक्रवात विशेषज्ञों का पैनल हर साल मिलता है और ज़रूरत पड़ने पर सूची फिर से भरी जाती है। ऐसा नहीं कि 64 नामों की इस सूची को लेकर कोई विवाद नहीं रहा। 2013 में श्रीलंका की ओर से रखे 'महासेन' नाम को लेकर श्रीलंका के राष्ट्रवादियों और अधिकारियों ने विरोध जताया था जिसे बाद में बदलकर 'वियारु' कर दिया गया। उनके मुताबिक़ राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे। इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना ग़लत है। (इस लेख को बीबीसी के समाचार पढ़ने के बाद लिखा गया है)। चक्रवाती तूफान हुदहुद विशाखापत्तनम तट से टकरा गया है। इसके साथ ही तेज हवाओं के साथ हो रही भारी बारिश ने तबाही मचानी शुरू कर दी है। चक्रवात हुदहुद ने आंध्र प्रदेश और ओडिशा के कई इलाको को अपनी चपेट में ले लिया है। तूफान की वजह से आंध्र-ओडिास में अब तक 6 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि हवा की रफ्तार अब कुछ धीमी हो गई है और विशाखापट्‌टनम में यह 120-130 किलोमीटर प्रति घंटे से चल रही है। दूसरी ओर भारी बारिश की वजह से कई इलाकों में बिजली गुल है। हुदहुद तूफान सबसे पहले विशाखापत्तनम के कैलाशगिरी में टकराया। इंडियन नेवी ने करीब 11 बजे बताया कि तूफान तट पर पहुंच गया है और अब इसका बुरा असर देखने को मिलने लगा है। विशाखापत्तनम समेत समूचे तटीय आंध्र में तेज बारिश हो रही है। कई इलाकों में पानी भर जाने से यातायात पर भी गहरा असर पड़ा है। अभी तक 1.5 लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा चुका है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने आंध्र प्रदेश और ओडिशा के अलावा पश्चिम बंगाल और झारखंड में भी हुदहुद के कारण भारी बारिश की संभावना जताई है। मौसम विभाग के अनुसार अगले 48 घंटों में उत्तरी आंध्र प्रदेश के पश्चिमी और पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम, विजयनगरम और श्रीकाकुलम जिलों में तथा ओडिशा के गंजम, गजपति, कोरापुट, रायगढ़ा, नबरंगपुर, मल्कानगिरि, कालाहांडी और फुलबानी जिलों में अधिकतर जगहों पर भारी बारिश (6.5-12.4 सेंटीमीटर), जबकि कुछ स्थानों पर अत्यंत भारी (12.5-24.4 सेंटीमीटर) बारिश और कुछेक जगहों पर भारी से भारी बारिश (24.5 सेंटीमीटर) हुई। दहुद के खतरे को देखते हुए तैयारियां तेज कर दी गई हैं और आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय जिलों के निचले इलाकों से हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। आंध्र के पांच तटीय जिलों से करीब 2 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है। सरकार ने 5 लाख लोगों को वहां से निकालने की तैयारी भी कर रखी है। राहत और बचाव कार्य के लिए सेना और नौसेना के लोगों को तैयार रखा गया है। इसके लिए तटीय जिलों में 146 चक्रवात राहत केंद्र स्थापित किए गए हैं। राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) ने राहत व बचाव अभियान के लिए 19 टीमें तैनात की हैं। प्रत्येक टीम में 45 से 50 सदस्य हैं। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में सैन्यकर्मी विशाखापत्तनम में तैनात हैं। मौसम विभाग के अनुसार  तूफान हुदहुद के चलते कच्चे मकानों को जबर्दस्त नुकसान हुआ है। इसके प्रभाव से कई इलाकों में बड़े पेड़ उखड़ गए हैं। रेल व सड़क परिवहन को भी नुकसान हुआ है।  इस बात को ध्यान में रखते हुए 60 से ज्यादा ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं और कई ट्रेनों का मार्ग भी बदला गया है। 
यह लेख लेखक समाचारों को पढ़कर लिखा है।

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

पटना का हादसा...खुशियों का दहन

दसहरे के दिन रावण दहन के दौरान पटना के गांधी मैदान में 5 लाख लोगों की भीड़ थी। जैसे ही रावण जलना शुरु हुआ लोगों में अफवाह फैल गई की बिजली का तार गिर गया है। लोगों में भगदड़ मच गई। दरवाजे पर बताया जाता है कि पहले एक महिला गिरी उसे उठाने के लिए तीन लोग झुके वे पीछे से भगदड़ की भीड़ की चपेट में आ गए और यहां से ही शुरु हुआ गिरने और भीड़ के पैरों तले कुचलकर खुशियों के रौंदाने का दौर। लोगों ने रावण के रुप में अपनी खुशियां यहां दहन कर दिए। बहुत भवायव हादसा था 33 लोग मरे। हादसा हमें हमेशा याद रहती हैं चाहे वो कुंभ मेले के समय हुई हो या फिर मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, असम की। नवरात्रि के अवसर पर बिहार की ही घटना हो या फिर कहीं और का हादसा। बस इन हादासाओं में होती है तो खुशियों का अंत और अंत भी इतना दर्दनाक की उफ्फ तक नहीं निकल पाता ऐसे हादसों को देखकर बे जुबान हो जाते हैं हम हादसों के कारण। कितने लोग इन हादसाओं मे अपनों को खो देते हैं कितने खुद के शरीर को खो देते है। हादसा अक्सर और हमेशा से दुखद रहा है पर खुशी के मौके पर जब हादसा होता है तो वह ज्यादा ही दुखद हो जाता है। उत्तराखंड की घटना याद है लाखों लोगों को सेना ने बड़ी मशक्कत करके बचाई थी।
                    हादसा होने के बाद राजनीति रंग जो दिया जाता है वह ज्यादा दुखद होता है। लोग अपनों को खोए होते हैं और नेता आरोप प्रत्यारोप में रह जाते हैं जबकि पहल ऐसी होनी चाहिए ताकी दुबारा ऐसा हादसा न हो। वैसे भारत में हादसे से लोग सिख नहीं लेते बल्कि वे लोग बस इस हादसे को  याद रखते हैं जिनके अपने इन हादसों में हमेशा के लिए खो जाते हैं। बाकि उस हादसे को हादसे की तरह ही भूल जाते हैं जो गलत है और यही हमें फिर हादसे तक पहुंचा देता है। हमें हादसों और घटनाओं से हमेशा सिख लेना चाहिए। इससे अगर सिख नहीं लिया गया तो हमेशा हादसों के मुंह में हम रहते हैं। इस दसहरें में तो हमने अपने खुशीयों का दहन कर दिया पर अगले में ना करें यह संकल्प लेना होगा.

बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

पाकिस्तान की कायरता या भारतीय कमजोरी

कुछ समय से पाकिस्तान लगातार बॉर्डर पर हमला कर रहा है इससे सेना के जवान तो मारे गए ही आम लोगों को जान माल की हानि भी हुई है। यह पाकिस्तान की कायरता है या भारतीय नेताओं की कमजोरी पता नहीं पर लगातार हो रहे हमले के बाद भी अगर हमारे नेता और सेना के अधिकारी फिर भी बात करने के लिए प्रयासरत है तो इसे कायराना हरकत जरुर कहेंगे, और वह भी भारतीयों का। क्योंकि सेना के जवान अपने साथियों को खो रहे है सीमा क्षेत्र से जुड़े गांव के लोग अपनी संपति और परिजनों को खो रहे हैं इसके बाद भी सेना के उच्च अधिकारी और भारतीय नेता अगर बात कर रहे हैं तो यह कायरता होगी। हमारी सेना पाकिस्तानी सेना से कभी कम नहीं रही इसा उदाहरण कारगिल युद्ध से लगा सकते हैं पर क्या भारतीय नेताओं में दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी या फिर वे उस काम को करना नहीं चाहते पता नहीं क्यों इस कायराना हरकत का जवाब वे देना नहीं चाहते। लोक सभा चुनाव के समय तो बहुत गरज-गरज कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था हमारी सेना को कभी शर्म अनुभव नही करना पड़ेगा अब क्या हो गया। क्यों भारतीय सेना को जवाब देने से रोका गया है। क्यों नहीं भारतीय सेना वायु सेना का इस्तेमाल कर के कुछ ही समय में पाकिस्तान को मजा चखाती। फिर जब पाकिस्तान की सेना गोली बारी कर रही है तो इसे क्या वहां के घुसपैठिए की हरकत कही जाएगी। यह गलत नहीं होगा। अगर वहां की सेना पहले से इस तरह की हरकत कर रही है तो हमें हमला क्यों नहीं करना चाहिए भारत किससे डर रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच में क्या दूसरी शक्ति भी काम कर रही है तो वो कौन सी शक्ति है जो दोनों देशों को लड़ाने का काम कर रही है अगर दोनों देशों को लड़ाने का काम हो रहा है तो फिर देश के राज नेता क्या कर रहे हैं। लगातार हो रहे हमले का जवाब आखिर क्यों नहीं दिया जा रहा है? सवाल उठना शुरु हो रहा है अगर जल्द इसका जवाब नहीं तय किया गया और पाकिस्तान को करारा जवाब नहीं दिया गया तो भारतीय नेताओं की कायरता होगी। 

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

सहारनपुर की घटना पू्र्व नियोजित था

यह सुनकर आश्चर्य होगा कि सहारनपुर में हुई हिंसा पूर्व नियोजित था। कांग्रेसी नेता पप्पू ने यह बात कबूल की है। उसने तो यह भी बताया कि किस तरह लोगों को भ्रमित किया गया है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है कि नेता लोग लोगों को भ्रमित करके दंगा कराते है चाहे वह 1984 का दंगा हो या मूजफ्परनगर का या फिर हो सहारनपुर का सभी जगह नेताओं ने ही लोगों को ज्यादा भड़काया। यह जानकर और बुरा लगता है कि हर बार अनपढ़ लोग मारे जाते हैं चाहे वे हिंदू हो या मुसलमान. उनको इतना बस बताया जाता है कि उनके धर्म को इस तरह से हानि पहुंचाई जा रही है बस वे अपने मन से इसी को सही मान भी लेते हैं क्योंकि उनके समझदार धर्म गुरु के द्वारा कही गई बात होती है। सहारनपुर घटना का मास्टर मोहर्रम अली उर्फ पप्पू ने पुलिस पूछताछ में बताया कि विवादित जमीन के लिए वह ब्लैकमेलिंग भी कर रहा था। मांग पूरी नहीं हुई तो उसने सोची-समझी साजिश के तहत मस्जिद के शहीद होने की बात लोगों तक पहुंचा कर लोगों को जमा किया फिर शुरु हुआ दुकानों को जलाने और लोगों को मारने का खेल। इस घटना के बाद यह कांग्रेसी नेता एवं पूर्व सभासद पश्चिम उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा दंगाई है। इसके  खिलाफ दंगे के 87 मामले दर्ज है। इन तमाम बातों से पता चलता है कि यह दंगाई कितने दिनों से लोगों के लिए खतरा बना हुआ है। यह जानकर और दुःख होता है कि ऐसे लोगों को पुलिस आजाद रखती जबकि ऐसे लोगों का जगह कहीं और होना चाहिए। हाल में देशभर में नया तनाव का माहौल बना हुआ है। कुछ शरारती तत्व हिंदू देवताओं के चित्रों पर जूता-चप्पल डालकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जिसके बाद कई जगहों पर विवाद और हिंसा फैल गई है।

रविवार, 27 जुलाई 2014

जला सहारनपुर....गई तीन जाने...रमजान और सावन...प्रकाशपर्व भी है अभी मना

सहारनपुर में जो हुआ वह सामान्य नहीं था। अभी तो सावन भी चल रहा है और पावन रमजान का माह भी। प्रकाश पर्व भी तो अभी ही मनाया गया है। तो फिर इस प्रकार कि स्थिति निर्मित क्यों हुई। तीन लोगों की जान गई 50 लोग घायल हुए 100 से ज्यादा दुकाने जला दी गई...किसका नुकसान हुआ हमारा और सिर्फ हमारा। ना तो सरकार इसके लिए दोषी हो और नहीं समाज दोषी हम है जो हमेशा मुर्खों जैसी हरकत करते है। अगर इसी मसले पर शांति से बात हुई होती तो आज यह स्थिति निर्मित नहीं हुई होती। पर न हिन्दु मानने को तैयार हे न मुस्लिम अब नया मामला सिखों के साथ हो गया। कब आखिर कब सुधरेंगे हम। कब होगी चारों ओर शांति। या सिर्फ देश में इसी प्रकार चलता रहेगा। अंग्रेजों ने यह लड़ाई लगा दिए वे चले गये पर हम लड़ते रहे और लड़ रहे हैं। हम कभी याद नहीं करना चाहते उस लड़ाई को जब हम एक साथ उनसे लड़े और देश से उन्हें जाने को मजबुर कर दिए। आज हमें याद है तो सिर्फ कड़वाहट और सिर्फ कड़वाहट।

शुक्रवार, 6 जून 2014

सामान्य नहीं हो सकती उत्तरप्रदेश की घटनाएं

उत्तरप्रदेश में इनदिनों जो कुछ हो रहा है वह सामान्य नहीं है। कहीं लड़कियों के साथ अनाचार के बाद पे़ड़ पर लटकाया जा रहा है तो कहीं उनके ऊपर तेजाब डाला जा रहा है।  दिल्ली गैंग रेप के बाद बने नये कानून के बाद से इस प्रकार की घटऩाए जादा बड़ी है। खासकर अपराधियों द्वारा पीडिता को अपराध के बाद जींदा नहीं छोड़े जाने का कारण भी यही हो सकता है। इतना कठोर कानून बनने के बाद भी इस तरह की घटनाएं हो रही है जो निंदनीय है और किसी भी समाज के लिए मान्य नहीं हैं। इक और बात यह किसी भी सभ्य समाज में गंदगी फैलाने जैसा हो सकता है। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं छत्तीसगढ़, दिल्ली, झारखण्ड, ओड़िशा, बिहार सहित कई राज्यों में इस प्रकार की घटनाएं हो रही है। उत्तरप्रदेश बड़ा राज्य है इसलिए यह ज्यादा प्रसिध्द हो रहा है। इससे पहले भी बलात्कार की घटनाएं हो रही थी और होती आ रही है जिसपर सिर्फ कानून से नहीं बल्कि मानसीकता परिवर्तन के साथ बदलाव किया जा सकता है। यह एक ऐसी विकृति है जिससे लोगो को निजात पाना हीं होगा। इसकी एक वजह खान पान और संगती भी है। जब तक हम अपने बच्चे की गलती को सुधारने के बजाए दंडीत करना शुरु नहीं करेेंगे वह ऐसी गलतियां करते रहेंगे। सोच में बदलाव की जरुरत है नहीं तो आने वाले समय में हर मां बाप यहीं चाहेंगे की उनके घर लड़की न हो। अगर लड़की नहीं हुई तो वह बहन कैसे बनेगी और अगर बहन नहीं बनी तो राखी कौन बाधेगा। इसके अलावा बहन होगी तभी तो जीजा जी मिलेंगे रिश्ता आगे बढ़ेगा। वह मां बनेगी भांजे भाजीयां होंगे इसके बीना तो  हम मामा भी नहीं बन पाएंगे। सोच को बदलना होगा। सिर्फ उत्तरप्रदेश ही नहीं देश की जनता को अपने सोच में परिवर्तन लाना होगा। इतना ही नहीं मां बाप भी अपने बच्चों की शादी सही उम्र में करे ताकि इस प्रकार की घटनाओं से निजात पाया जा सके । कैरियर का शादी से कोई संबंध नहीं है इसलिए कैरियर के साथ कैरेक्टर भी अच्छा हो इसका भी खयाल रखा जाए। घटनाएं कम होगी और सभ्य समाज का उदय होगा।

वन्दे मातरम