गुरुवार, 13 अगस्त 2015

कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना क्यों अवमानना है?

कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी नहीं किया जाना चाहिए वह अवमानना होता है, लेकिन क्यों क्योंकि वहां होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर नहीं किया जाना चाहिए। फैसले को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता। इतना ही नहीं कई मामलों में तो पक्षकार तक को पता नहीं होता कि फैसला हुआ क्या है। जिस क्षेत्र में हो उस क्षेत्र के हिसाब के भाषा में फैसला क्यों नहीं किया जाता क्या यह कानून सबके लिए समान है। नहीं इसलिए नहीं है क्योंकि समान कानून व्यवस्था भारत में है ही नहीं। जिसके पास पैसा है वह सुप्रीम कोर्ट तक से चंद दिनों में बाहर आ जाता है जिसके पास पैसा नहीं वह पुरी जिंदगी जेल में काट डालता है। उसे न्याय कैसे मिला। कोर्ट के सारे मामलो के लिए पीआरओ क्यों नहीं नियुक्त किया जाता ताकि वे सारी बाते स्पष्ट तौर पर मीडिया और सोशल मीडिया पर शेयर करें। सही जो हो वह लोगों तक पहुंचे। जिस क्षेत्र का कोर्ट हो उस क्षेत्र के भाषा के साथ हो। अगर छत्तीसगढ़ में है तो छत्तीसगढ़ी के साथ हिंदी और अंग्रेजी में क्यों फैसला नहीं होता। झारखंड और उत्तरप्रदेश बिहार में भोजपुरी और हिंदी अंग्रेजी में फैसला क्यों नहीं होता सारे पक्षकार अंग्रेजी जानते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि कई वकिल पक्षकारों को अंग्रेजी में लिखे होने के कारण गलत बता देतें है। हालांकि यह कम ही होता है लेकिन इससे पक्षकारों का समय के साथ भारी मात्रा में धन बर्बाद होता है। इसे कोर्ट क्यों नहीं देखती। सब जगहों पर कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी होना लाजमी है। आने वाले समय में कोर्ट को डराने के लिए हथियार के रूप में लोग यूज करना शुरू करने वाले हैं। करने वाले नहीं करना शुरु कर दिए हैं। 

दबंग भाई सल्लू की दीदी जयललीता को भी हाईकोर्ट से बड़ी राहत

हिट एंड रन केश में निचली अदालत से 5 साल की सजा मिलने के बाद हाईकोर्ट से अभिनेता सलमान खान को बड़ी राहत दी गई। इसी कड़ी में जयललीता को आय से अधिक संपत्ति मामले में हाईकोर्ट से दोषमुक्त कर दिया गया। इस फैसले के बाद जयललीता के जहां मुख्यमंत्री बनने का सपना एक बार फिर साकार हो सकता है वहीं राजनीतिक गलियारे में उनकी मौजूदगी हलचल मचा सकती है। दबंग सलमान तो सिर्फ फिल्मों में दबंग का रोल अदाकारी से किया है जयललीता तो असली दबंगई करती रही हैं। लोक सभा चुनाव के समय थर्ड फ्रंट का नाम आने के बाद कांग्रेस और भाजपा के पसीने छूट गए थे। अब जब की जयललीता दोषमुक्त हो चुकी है तो उनको बदनाम करने वाली संस्था के दो-चार कर्मचारियों पर कार्रवाई भी कर दिया जाए। हालांकि इस तरह के गतिविधियों और कार्रवाईयों को राजनीति का ही एक हिस्सा माना जा रहा है। इसमें स्वयं को हाइलाइट करके दिखाने के लिए झूठे एफआईआर और जेल भेजकर पब्लिक से सहानुभूति लेना। हालांकि जनता अब समझदार हो गई है, सब समझने लगी  है लेकिन खुद को समझा नहीं पाती की जो हकिकत वे देख रहे हैं दरअसल वह है ही नहीं वह तो मिरीचिका है। खैर जो हुआ वह अच्छा है या बुरा यह तो वे आप अच्छे से तय कर लिए होंगे. मैं अगर अब यहां लिख भी दूं की भ्रष्ट्राचार की दलदल में पुरा देश डुबा हुआ है इसे आप थोड़े मानेंगे जो हकिकत होगा उसे मैं आपसे तो छीपा नहीं पाउंगा। 

बुधवार, 12 अगस्त 2015

जज कब मानेंगे वे सरकारी के नुमाइंदे नहीं है

जिला कोर्ट हो या हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट यहां के जज कब मानेंगे कि वे सरकार की कठपुतली नहीं अपने आप में सुप्रीम कोर्ट होते हैं। उनके फैसले अपने आप में महत्वपूर्ण होते है। कुछ दिनों से देखने मिल रहा है कि सरकार जैसा संसोधन कर दिया बस जज उसे मान लिए। कितने विधिविधाई मंत्री एलएलबी या एलएलएम हैं। नहीं के बराबर इसके बाद भी उन्हें कानून मंत्री बना दिया जाता है। अब बोए पेड़ बबूल का तो आम कहा से होय वाली कहावत इसलिए चरितार्थ कर रहे हैं क्योंकि सोर्श के दम पर जज बन गए हैं तो जो सरकार चाहेगी वहीं करना होगा।