शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

भारत में मुसलान और पाकिस्तान में हिन्दू परेशान हैं

हिंदू-मुसलमान हो रहा है, भारत-पाकिस्तान हो रहा है।
भारत में मुसलमान और पाकिस्तान में हिंदू परेशान हो रहा है।

देश की राजनीति गहराई हुई है, बिहार में चुनाव हो रहा है। लोग नए-नए मुद्दे रोज निकाल रहे हैं, कभी गाय कां मांस तो कभी सुअर का मांस किया जा रहा है। वहीं हाल में जज की स्थापना और अब पाकिस्तान में हिंदूओं की दुर्दशा पर कहानी मीडिया में जोर-शोर से दिखाई जा रही है। मुद्दा चाहिए बहस के लिए, मीडिया मुद्दा दे रहा है, राजनीतिक के लोग हैं देश में, बड़े जानकार है वे इन मुद्दों पर लगातार बहस कर रहे हैं। कही गाय के मांस पर लोग मारे जा रहे हैं तो कहीं भूखे लोग मर रहे हैं। यह भी हो रहा है कि कहीं लड़कियां उठाई जा रही हैं। हिंदू हिंदूस्तान में और मुस्लिम पाकिस्तान में परेशान कर रहा है। मुद्दे बहुत हैं लोग उस ओर ध्यान नहीं दे रहे, सिर्फ और सिर्फ राजनिती की बात कर रहे हैं। 

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

आदिवासी शब्द को जाति विशेष न समझे हम सब आदिवासी है



आदिवासी का मतलब क्या है क्या यह आदिवासी Tribal जनजातीय का प्रायवाची है। अगर हां तो इसका सही अर्थ क्या है। क्योंकि मुझे किसी ने बताया कि छत्तीसगढ़ क्षेत्र आदिवासियों का क्षेत्र रहा है और यहां के ज्यादातर राजा आदिवासी है। कुछ लोगों का कहना है कि जनरल बिहार, उत्तर प्रदेश और दुसरे राज्य से आए है। दिमाग पर जोर डालिए जनरल मतलब क्या General सामान्य होता है मतलब आदिवासी भी सामान्य होता है। यहां दरअसल मुझे पूरा का पूरा हिंदू विवादित लगता है। क्योंकि हिंदू कोई धर्म नहीं है यह संस्कृति है। लोगों के बेवकूपाना हरकत के कारम हिंदू धर्म और आदिवासी एक विशेष जाति बन गई।  हिंदू संस्कृति सिंधू नदी के तट पर बसे होने के कारण बनी थी। जिस धर्म की बात किया जा रहा है वह सनातन धर्म है। इस धर्म के बारे में कोई चर्चा नहीं करना चाहता। सनातन शब्द भी सनातन काल से चली आ रही है। इसके लोग भी आदिकाल वाले ही है। अर्थात वे भी आदिवासी है। इसमें चार जातियां थी जिन्हें वर्तमान में जनरल, ओबीसी, एससी और एसटी समझया गया है। सनातक काल में इन चार जातियों को कर्म के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के रूप में विभाजित किया गया था। जानकार बताते हैं कि कर्म के आधार पर उस समय जातियों का विभाजन किया गया था। बाद में यह कर्म ही सभी जातियों का दुष्कर्म कर रही है। कर्म के आधार ने जातियों को निराधार कर दिया। जो शुद्र थे वे कब आदिवासी बन गए पता ही नहीं चला। आदिवासी शब्द का शाब्दिक अर्थ मूल निवासी से है था और रहेगा। साथ ही भारत देश के मूल निवासी यही चारो जातियां थी अर्थात ये आदिवासी हैं। देश में मुस्लीम भी आदिवासी हो गए हैं क्योंकि कई सौ साल पहले 1400 ई. के आसपास मुस्लीम देश में आए। इस दौरान कई सदी बीत गई इसलिए मुस्लिम भी आदिवासी हो गए हैं। साथ ही बात अगर ईसाई धर्म की की जाए तो यह भी आदिवासी काल में है क्योंकि 1600 ई. में यह धर्म भारत में पहुंचा। लगभग 4 सौ सालों से यह धर्म भारत में है। गणना करने से पहले समझना होगा। देश पुरे आदिवासियों का है। कुछ लोग आदिकाल का मतलब भी नहीं जानते और बहस में कुद जाते हैं। चड्‌डी का नाड़ा बांधने नहीं आता पजामा पहनने की बात करते हैं। आदिवासी का मतलब समझो राजनिती करना है तो मां.....।

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

मूर्तियों के विसर्जन पर दारू और डीजे जरूरी क्या है

हिंदूओं का त्योहार कई रंगों और खुशियों को लेकर आता है। इसमें गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, काली पूजा, सरस्वती पूजा प्राय: देखें तो ज्यादातर त्योहारों से पहले प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इसको धूमधाम से मनाने के लिए लोग पहले ढोल, ताशों और नगाड़ों का उपयोग करते थे। यह मनमोहक हुआ करता था। आधुनिकता का दौर है, इलेक्ट्रानिक चीजें भरपूर उपलब्ध हैं वह भी सस्ते में। वर्तमान में देखने मिलता है कि लोग भूर्ति विसर्जन के मौके पर डीजे का उपयोग करते हैं। यह कितना जरूरी है। कुछ वर्षों से मूर्ति पूजा के दौरान मुझे रिपोर्टिंग करने का मौका मिला है। वहां एक बात अक्सर देखता हूं की तेज साउंड इसे मैं कानफोड़ू सांउंड कहू तो कोई आपत्ति नहीं है इसके बीच छोटे-छोटे बच्चे शराब पीकर लगातार डांस करते हैं। मूर्ति विसर्जन श्रद्धा और शांति के लिए लेकिन उसे प्रवाहित करने के दौरान शराब जो श्रद्धा उत्पन्न कर ही नहीं सकता और तेज साउंड डीजे जो शांति कभी फैला ही नहीं सकता। लोग आधुनिक हो रहे हैं ठीक है, लेकिन इस प्रकार की सभ्यता शुरू करना वह भी लोगे के चंदे पर यह सही नहीं। लोगों ने यही सब कुराफात देखकर चंदा देना कम भी किया है, लेकिन उनकी श्रद्धा हर बार उन्हें नहीं रोक पाती। 10 दिनों तक देवी-देवताओं को पूजा करने सर आंखो पर बैठाने के बाद उसे बेदर्दी के साथ नदी में डाल देना। उतनी बड़ी-बड़ी मूर्तियों को यह बड़ी बात हो सकती है। मैं न आस्तिक हूं न ही नास्तिक छोटी मूर्तियां पूजा के लिए रखी जाएं तो ज्यादा बेहतर होगा। शहर के विभिन्न चौकों से इनके एक साथ शोभायात्रा निकले तो ज्यादा बेहतर लगेगा। यह क्या कि जब डीजे वाला तय करेगा तब विसर्जन होगा। आस्था है तो धर्मग्रंथों के अनुसार समय पर प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाए। गणेश पूजा अभी बिता पितृ पक्ष में लोगों को प्रतिमाओं का विसर्जन करते हुए देखा। ठीक है विसर्जन में भीड़ नहीं मिली, लेकिन यह सही भी तो नहीं है न। अपने किसी रिस्तेदार के मृत्यु के बाद कितने दिनों तक पार्थिव शरीर को घर पर रखा जाता है। इन प्रतिमाओं में देवताओं का वास होता है। उनके चले जाने के बाद वह भी उसी पार्थिव शरीर की तरह हो जाता है। इसके नुकसान ही होते हैं फायदे नहीं। पूरी श्रद्धा तब ही खत्म हो जाती है।