गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

पटना का हादसा...खुशियों का दहन

दसहरे के दिन रावण दहन के दौरान पटना के गांधी मैदान में 5 लाख लोगों की भीड़ थी। जैसे ही रावण जलना शुरु हुआ लोगों में अफवाह फैल गई की बिजली का तार गिर गया है। लोगों में भगदड़ मच गई। दरवाजे पर बताया जाता है कि पहले एक महिला गिरी उसे उठाने के लिए तीन लोग झुके वे पीछे से भगदड़ की भीड़ की चपेट में आ गए और यहां से ही शुरु हुआ गिरने और भीड़ के पैरों तले कुचलकर खुशियों के रौंदाने का दौर। लोगों ने रावण के रुप में अपनी खुशियां यहां दहन कर दिए। बहुत भवायव हादसा था 33 लोग मरे। हादसा हमें हमेशा याद रहती हैं चाहे वो कुंभ मेले के समय हुई हो या फिर मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, असम की। नवरात्रि के अवसर पर बिहार की ही घटना हो या फिर कहीं और का हादसा। बस इन हादासाओं में होती है तो खुशियों का अंत और अंत भी इतना दर्दनाक की उफ्फ तक नहीं निकल पाता ऐसे हादसों को देखकर बे जुबान हो जाते हैं हम हादसों के कारण। कितने लोग इन हादसाओं मे अपनों को खो देते हैं कितने खुद के शरीर को खो देते है। हादसा अक्सर और हमेशा से दुखद रहा है पर खुशी के मौके पर जब हादसा होता है तो वह ज्यादा ही दुखद हो जाता है। उत्तराखंड की घटना याद है लाखों लोगों को सेना ने बड़ी मशक्कत करके बचाई थी।
                    हादसा होने के बाद राजनीति रंग जो दिया जाता है वह ज्यादा दुखद होता है। लोग अपनों को खोए होते हैं और नेता आरोप प्रत्यारोप में रह जाते हैं जबकि पहल ऐसी होनी चाहिए ताकी दुबारा ऐसा हादसा न हो। वैसे भारत में हादसे से लोग सिख नहीं लेते बल्कि वे लोग बस इस हादसे को  याद रखते हैं जिनके अपने इन हादसों में हमेशा के लिए खो जाते हैं। बाकि उस हादसे को हादसे की तरह ही भूल जाते हैं जो गलत है और यही हमें फिर हादसे तक पहुंचा देता है। हमें हादसों और घटनाओं से हमेशा सिख लेना चाहिए। इससे अगर सिख नहीं लिया गया तो हमेशा हादसों के मुंह में हम रहते हैं। इस दसहरें में तो हमने अपने खुशीयों का दहन कर दिया पर अगले में ना करें यह संकल्प लेना होगा.

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