गुरुवार, 17 सितंबर 2020

हार नहीं माने थे हार नहीं मानेंगे


हार नहीं माने थे हार नहीं मानेंगे

हम ही करेंगे, जिसे हम ठानेंगे।

मुश्किलें आएंगी, मुसीबत से घिरेंगे

रार नहीं ठाने थे, रार नहीं ठानेंगे।

काम पूरे होंगे देर ही सही

वक्त के साथ चलेंगे तूफान में न डिगेंगे।

वह दरिया है जो गहराई का पता पूछता है

समंदर भी यही है गहराई नाप लेंगे।

लगाएंगे गोता मोती भी निकालेंगे

डूबकर आंखों में उनके हम मुस्कुराएंगे। 

तबीयत ठीक है उनकी अभी 

हर दिन सुधार कर रहे हैं

जिएंगे चार दिन फिर लौटकर आएंगे। 

मौकापरस्त दुनिया है यहां किसी का भरोसा नहीं

यहां हर कोई लूटने में लगा है, उन्हें हम बचाएंगे।

बुधवार, 16 नवंबर 2016

लड़ाई तो बंदुक से ही लड़ेंगे अब कोई अखबार न निकालो

वर्तमान दौर और परिस्थियां देखकर ऐसा महसूस होने लगा है कि मशहूर शायर अकबर इलाहबादी की लिखी लाइन “खींचों न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो” वर्तमान परिस्थिति में गलत साबित कर दिया है अखबार मालिकों और अंधाधूंध संचालित टीवी चैनलों ने। परिस्थिति अब अखबारों से नहीं सम्हली जा रही यह कहना भी गलत न होगा की इन परिस्थितियों के जनक ही अखबार हैं। अब तो लड़ाई बंदुक से लड़ी जाएगी। इसकी शुरुआत हलांकि हो चुकी है, लेकिन भटके हुए लोगों ने यह काम शुरू किया है। एक तरफ जहां नकस्लियों ने बंदुक उठाकर कचरा हो चुकी व्यस्था के विरोध में है तो वहीं बंदूक उठाए सेना के जवान व्यवस्था को सुधारने के लिए मर रहे हैं। अगर नक्सली अपने असली मुद्दे पर लड़ाई शुरू किए तो यह जायज और देश के लिए सबसे अच्छी बात हो सकती है। बस शुरूआत अच्छी करने वाले नक्सलियों के बीच में नेता अच्छे हो जाएं। या यू कहूं की कोई क्रांतिकारी विचारधारा वाला व्यक्ति की बात ये नक्सली मान ले। बंदूक के दम पर ही सत्ता करें, लेकिन काम देश की भलाई के लिए करें। देश में 100 जवान हैं तो उसमें 90 जवान गांव के किसानों के हैं, उन्हें मारना छोड़ दें मारना ही हैं तो उन 10 लोगों को मारे जो कुर्सी के भूखे हैं। जो उच्च पदों पर बैठकर हुकुमत चला रहे हैं। व्यवसाय कर रहे हैं। देश को बेंच रहे हैं। उन्हे मरना भी चाहिए। ऐसे कुत्तों की देश में जरूरत नहीं हैं। साथ ही नक्सली अगर मार भी रहे हैं तो भ्रष्ट लोगों को मारे। चाहे वह किसी भी मामले में भ्रष्ट हो। एक रुपए की भी रिश्वत लेता है तो साले का हाथ काट दो बस सही दिशा में काम करने की जरूरत हैं। नकस्ली हर जगह सही नहीं है सरकार की करतूत भी बहुत जगहों पर गलत है। न्यायालय सरकार के तलवे चाटते हुए फैसले सुना रहे हैं, पुलिस सरकारों की तलवे चाटते हुए बेकसुरों मार रही है इसका ताजा उदाहरण है मीना खलखो का मामला। बेकसूर को मारकर वाहवाही लूटी गई। व्यवस्था बदला है तो लड़ाई का तरीका भी बदलना होगा। जरूरत पड़े तो हथियार भी उठाना होगा। कब तक मरेगा किसान का बेटा अब तो शहंशाह के बेटा को मरना होगा। खुलकर कह सकते हैं कि लड़ाई तो अब बंदुक के दम पर ही लड़ना होगा अखबार कोई न निकालो।

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

भारत में मुसलान और पाकिस्तान में हिन्दू परेशान हैं

हिंदू-मुसलमान हो रहा है, भारत-पाकिस्तान हो रहा है।
भारत में मुसलमान और पाकिस्तान में हिंदू परेशान हो रहा है।

देश की राजनीति गहराई हुई है, बिहार में चुनाव हो रहा है। लोग नए-नए मुद्दे रोज निकाल रहे हैं, कभी गाय कां मांस तो कभी सुअर का मांस किया जा रहा है। वहीं हाल में जज की स्थापना और अब पाकिस्तान में हिंदूओं की दुर्दशा पर कहानी मीडिया में जोर-शोर से दिखाई जा रही है। मुद्दा चाहिए बहस के लिए, मीडिया मुद्दा दे रहा है, राजनीतिक के लोग हैं देश में, बड़े जानकार है वे इन मुद्दों पर लगातार बहस कर रहे हैं। कही गाय के मांस पर लोग मारे जा रहे हैं तो कहीं भूखे लोग मर रहे हैं। यह भी हो रहा है कि कहीं लड़कियां उठाई जा रही हैं। हिंदू हिंदूस्तान में और मुस्लिम पाकिस्तान में परेशान कर रहा है। मुद्दे बहुत हैं लोग उस ओर ध्यान नहीं दे रहे, सिर्फ और सिर्फ राजनिती की बात कर रहे हैं। 

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

आदिवासी शब्द को जाति विशेष न समझे हम सब आदिवासी है



आदिवासी का मतलब क्या है क्या यह आदिवासी Tribal जनजातीय का प्रायवाची है। अगर हां तो इसका सही अर्थ क्या है। क्योंकि मुझे किसी ने बताया कि छत्तीसगढ़ क्षेत्र आदिवासियों का क्षेत्र रहा है और यहां के ज्यादातर राजा आदिवासी है। कुछ लोगों का कहना है कि जनरल बिहार, उत्तर प्रदेश और दुसरे राज्य से आए है। दिमाग पर जोर डालिए जनरल मतलब क्या General सामान्य होता है मतलब आदिवासी भी सामान्य होता है। यहां दरअसल मुझे पूरा का पूरा हिंदू विवादित लगता है। क्योंकि हिंदू कोई धर्म नहीं है यह संस्कृति है। लोगों के बेवकूपाना हरकत के कारम हिंदू धर्म और आदिवासी एक विशेष जाति बन गई।  हिंदू संस्कृति सिंधू नदी के तट पर बसे होने के कारण बनी थी। जिस धर्म की बात किया जा रहा है वह सनातन धर्म है। इस धर्म के बारे में कोई चर्चा नहीं करना चाहता। सनातन शब्द भी सनातन काल से चली आ रही है। इसके लोग भी आदिकाल वाले ही है। अर्थात वे भी आदिवासी है। इसमें चार जातियां थी जिन्हें वर्तमान में जनरल, ओबीसी, एससी और एसटी समझया गया है। सनातक काल में इन चार जातियों को कर्म के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के रूप में विभाजित किया गया था। जानकार बताते हैं कि कर्म के आधार पर उस समय जातियों का विभाजन किया गया था। बाद में यह कर्म ही सभी जातियों का दुष्कर्म कर रही है। कर्म के आधार ने जातियों को निराधार कर दिया। जो शुद्र थे वे कब आदिवासी बन गए पता ही नहीं चला। आदिवासी शब्द का शाब्दिक अर्थ मूल निवासी से है था और रहेगा। साथ ही भारत देश के मूल निवासी यही चारो जातियां थी अर्थात ये आदिवासी हैं। देश में मुस्लीम भी आदिवासी हो गए हैं क्योंकि कई सौ साल पहले 1400 ई. के आसपास मुस्लीम देश में आए। इस दौरान कई सदी बीत गई इसलिए मुस्लिम भी आदिवासी हो गए हैं। साथ ही बात अगर ईसाई धर्म की की जाए तो यह भी आदिवासी काल में है क्योंकि 1600 ई. में यह धर्म भारत में पहुंचा। लगभग 4 सौ सालों से यह धर्म भारत में है। गणना करने से पहले समझना होगा। देश पुरे आदिवासियों का है। कुछ लोग आदिकाल का मतलब भी नहीं जानते और बहस में कुद जाते हैं। चड्‌डी का नाड़ा बांधने नहीं आता पजामा पहनने की बात करते हैं। आदिवासी का मतलब समझो राजनिती करना है तो मां.....।

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

मूर्तियों के विसर्जन पर दारू और डीजे जरूरी क्या है

हिंदूओं का त्योहार कई रंगों और खुशियों को लेकर आता है। इसमें गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, काली पूजा, सरस्वती पूजा प्राय: देखें तो ज्यादातर त्योहारों से पहले प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इसको धूमधाम से मनाने के लिए लोग पहले ढोल, ताशों और नगाड़ों का उपयोग करते थे। यह मनमोहक हुआ करता था। आधुनिकता का दौर है, इलेक्ट्रानिक चीजें भरपूर उपलब्ध हैं वह भी सस्ते में। वर्तमान में देखने मिलता है कि लोग भूर्ति विसर्जन के मौके पर डीजे का उपयोग करते हैं। यह कितना जरूरी है। कुछ वर्षों से मूर्ति पूजा के दौरान मुझे रिपोर्टिंग करने का मौका मिला है। वहां एक बात अक्सर देखता हूं की तेज साउंड इसे मैं कानफोड़ू सांउंड कहू तो कोई आपत्ति नहीं है इसके बीच छोटे-छोटे बच्चे शराब पीकर लगातार डांस करते हैं। मूर्ति विसर्जन श्रद्धा और शांति के लिए लेकिन उसे प्रवाहित करने के दौरान शराब जो श्रद्धा उत्पन्न कर ही नहीं सकता और तेज साउंड डीजे जो शांति कभी फैला ही नहीं सकता। लोग आधुनिक हो रहे हैं ठीक है, लेकिन इस प्रकार की सभ्यता शुरू करना वह भी लोगे के चंदे पर यह सही नहीं। लोगों ने यही सब कुराफात देखकर चंदा देना कम भी किया है, लेकिन उनकी श्रद्धा हर बार उन्हें नहीं रोक पाती। 10 दिनों तक देवी-देवताओं को पूजा करने सर आंखो पर बैठाने के बाद उसे बेदर्दी के साथ नदी में डाल देना। उतनी बड़ी-बड़ी मूर्तियों को यह बड़ी बात हो सकती है। मैं न आस्तिक हूं न ही नास्तिक छोटी मूर्तियां पूजा के लिए रखी जाएं तो ज्यादा बेहतर होगा। शहर के विभिन्न चौकों से इनके एक साथ शोभायात्रा निकले तो ज्यादा बेहतर लगेगा। यह क्या कि जब डीजे वाला तय करेगा तब विसर्जन होगा। आस्था है तो धर्मग्रंथों के अनुसार समय पर प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाए। गणेश पूजा अभी बिता पितृ पक्ष में लोगों को प्रतिमाओं का विसर्जन करते हुए देखा। ठीक है विसर्जन में भीड़ नहीं मिली, लेकिन यह सही भी तो नहीं है न। अपने किसी रिस्तेदार के मृत्यु के बाद कितने दिनों तक पार्थिव शरीर को घर पर रखा जाता है। इन प्रतिमाओं में देवताओं का वास होता है। उनके चले जाने के बाद वह भी उसी पार्थिव शरीर की तरह हो जाता है। इसके नुकसान ही होते हैं फायदे नहीं। पूरी श्रद्धा तब ही खत्म हो जाती है। 

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना क्यों अवमानना है?

कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी नहीं किया जाना चाहिए वह अवमानना होता है, लेकिन क्यों क्योंकि वहां होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर नहीं किया जाना चाहिए। फैसले को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता। इतना ही नहीं कई मामलों में तो पक्षकार तक को पता नहीं होता कि फैसला हुआ क्या है। जिस क्षेत्र में हो उस क्षेत्र के हिसाब के भाषा में फैसला क्यों नहीं किया जाता क्या यह कानून सबके लिए समान है। नहीं इसलिए नहीं है क्योंकि समान कानून व्यवस्था भारत में है ही नहीं। जिसके पास पैसा है वह सुप्रीम कोर्ट तक से चंद दिनों में बाहर आ जाता है जिसके पास पैसा नहीं वह पुरी जिंदगी जेल में काट डालता है। उसे न्याय कैसे मिला। कोर्ट के सारे मामलो के लिए पीआरओ क्यों नहीं नियुक्त किया जाता ताकि वे सारी बाते स्पष्ट तौर पर मीडिया और सोशल मीडिया पर शेयर करें। सही जो हो वह लोगों तक पहुंचे। जिस क्षेत्र का कोर्ट हो उस क्षेत्र के भाषा के साथ हो। अगर छत्तीसगढ़ में है तो छत्तीसगढ़ी के साथ हिंदी और अंग्रेजी में क्यों फैसला नहीं होता। झारखंड और उत्तरप्रदेश बिहार में भोजपुरी और हिंदी अंग्रेजी में फैसला क्यों नहीं होता सारे पक्षकार अंग्रेजी जानते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि कई वकिल पक्षकारों को अंग्रेजी में लिखे होने के कारण गलत बता देतें है। हालांकि यह कम ही होता है लेकिन इससे पक्षकारों का समय के साथ भारी मात्रा में धन बर्बाद होता है। इसे कोर्ट क्यों नहीं देखती। सब जगहों पर कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी होना लाजमी है। आने वाले समय में कोर्ट को डराने के लिए हथियार के रूप में लोग यूज करना शुरू करने वाले हैं। करने वाले नहीं करना शुरु कर दिए हैं। 

दबंग भाई सल्लू की दीदी जयललीता को भी हाईकोर्ट से बड़ी राहत

हिट एंड रन केश में निचली अदालत से 5 साल की सजा मिलने के बाद हाईकोर्ट से अभिनेता सलमान खान को बड़ी राहत दी गई। इसी कड़ी में जयललीता को आय से अधिक संपत्ति मामले में हाईकोर्ट से दोषमुक्त कर दिया गया। इस फैसले के बाद जयललीता के जहां मुख्यमंत्री बनने का सपना एक बार फिर साकार हो सकता है वहीं राजनीतिक गलियारे में उनकी मौजूदगी हलचल मचा सकती है। दबंग सलमान तो सिर्फ फिल्मों में दबंग का रोल अदाकारी से किया है जयललीता तो असली दबंगई करती रही हैं। लोक सभा चुनाव के समय थर्ड फ्रंट का नाम आने के बाद कांग्रेस और भाजपा के पसीने छूट गए थे। अब जब की जयललीता दोषमुक्त हो चुकी है तो उनको बदनाम करने वाली संस्था के दो-चार कर्मचारियों पर कार्रवाई भी कर दिया जाए। हालांकि इस तरह के गतिविधियों और कार्रवाईयों को राजनीति का ही एक हिस्सा माना जा रहा है। इसमें स्वयं को हाइलाइट करके दिखाने के लिए झूठे एफआईआर और जेल भेजकर पब्लिक से सहानुभूति लेना। हालांकि जनता अब समझदार हो गई है, सब समझने लगी  है लेकिन खुद को समझा नहीं पाती की जो हकिकत वे देख रहे हैं दरअसल वह है ही नहीं वह तो मिरीचिका है। खैर जो हुआ वह अच्छा है या बुरा यह तो वे आप अच्छे से तय कर लिए होंगे. मैं अगर अब यहां लिख भी दूं की भ्रष्ट्राचार की दलदल में पुरा देश डुबा हुआ है इसे आप थोड़े मानेंगे जो हकिकत होगा उसे मैं आपसे तो छीपा नहीं पाउंगा।